(पत्रकार – अनिल अग्रवाल)
जयपुर/ अलवर/ लक्ष्मणगढ़। अनिश न्यूज।
स्वतंत्रता सेनानी सुखदेव सिंह का जन्म अलवर जिले के लक्ष्मणगढ़ तहसील क्षेत्र के गांव गण्डूरा में सन 1923 में जाट परिवार में हुआ था। उनके पिताजी श्री नारायण जी एवं माता जी श्रीमती कंचन देवी था। पिताजी खेती का कार्य करते थे। उस दौरान शैक्षणिक सुविधाओं का अभाव होने के कारण तथा आवागमन के साधनों का अभाव होने के कारण शिक्षा ग्रहण नहीं कर पाए। सुखदेव के तीन भाई थे। दिल में देश सेवा का जज्बा होने के कारण स्वयं अविवाहित रहे। सुखदेव सिंह जी का निधन 87 वर्ष की उम्र में 06 दिसम्बर 2010 को हो गया था।
सुखदेव जी महज 18 वर्ष की उम्र में ही 10 मार्च 1941 को सातवीं राजपूताना राईफल्स पल्टन में भती हो गए थे। दिल्ली में छह माह का प्रशिक्षण देकर उन्हें समुद्री मार्ग से सिंगापुर भेज दिया गया। इक्कीस दिन की समुद्री यात्रा करने के बाद व सिंगापुर पहुंचे। जिसके बाद अंग्रेजो की ओर से जापान के विरूद्ध मोर्चा संभाला और लड़ने लगे।
घमासान लड़ाई में जापान की जीत हुई फलस्वरूप इन्हें जापानियों द्वारा कैद कर लिया गया। करीब दो सप्ताह तक कैदी शिविर में रहने के बाद नेताजी सुभाषचन्द्र बोस के जोशीले भाषण को सुनकर सुखदेव सिंह जी जबरदस्त प्रभावित हुए। बोस का भाषण सुखदेव जी के मन मस्तिष्क में इस कदर बैठ गया कि सिंह ने अब हिन्दुस्तान के लिए मर मिटने की सौंगन्द खा ली। सुखदेव सिंह जी ने नेताजी सुभाषचन्द्र बोस के नेतृत्व वाली आजाद हिंद फौज में भर्ती हो गए। सुखदेव जी की आवाज इतनी बुलंद थी कि जब वो नारा लगाते थे तो ऐसा लगता था मानो दर्जनों लोगों की आवाज आ रही हो।
पूरी दुनिया में भीषण द्वितीय विश्व युद्ध चल रहा था। उसी दौरान अमरीका ने जापान के हिरोशिमा शहर पर 6 अगस्त 1945 को परमाणु बम डाला तथा 9 अगस्त 1945 को नागाशाकी शहर पर परमाणु बम डालकर विश्व युद्ध की दिशा ही बदल दी। युद्ध में जापान ने हाथ खड़े कर दिया। जिसके बाद विश्व युद्ध समाप्त हो गया। लड़ाई बंद हो गई। इसी बीच अंग्रेजों ने सुखदेव सिंह सहित आजाद हिंद फौज के अनेकों सैनिकों को म्यांमार स्थित रंगून की जेल में बंद कर दिया। जंगी कैदी के रूप में वे तीन माह तक रंगून की जेल में बंद रहे। वहां से मुक्त होने पर उन्हें समुद्री मार्ग से कलकत्ता लाया गया। जहां जिगरगच्छा शिविर में कैद कर दिया गया। तीन माह तक शिविर में रखने के बाद उन्हें मुलतान भेज दिया गया और वहां से तीन महीने बाद उन्हें अपने गांव गण्डूरा भेज दिया गया।
सम्मान पत्र:- स्वतंत्रता के पच्चीसवें वर्ष के अवसर पर स्वतंत्रता संग्राम में स्मरणीय योगदान के लिए सुखदेव सिंह जी को राष्ट्र की ओर से प्रधानमंत्री श्रीमती इन्दिरा गांधी ने 15 अगस्त 1972 को ताम्रपत्र भेंट किया।
राजस्थान स्वर्ण जयन्ती समारोह समिति जयपुर के तत्वाधान में 14 नवम्बर 2000 को स्वतंत्रता संग्राम में अविस्मरणीय योगदान के लिए राजस्थान स्थापना की स्वर्ण जयन्ती के अवसर पर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने भेंट किया। इनके अलावा राजस्थान प्रदेश स्वतंत्रता सैनिक संगठन जयपुर की ओर से 14 जून 1992 को द्वितीय सम्मेलन के अवसर पर प्रतीक चिन्ह भेंट किया गया।
पारिवारिक विवरण:- सुखदेव जी चार भाईयों में सबसे छोटे थे। विवाह नहीं किया था। अपने भाई सुकलाल चौधरी के पुत्र मिट्ठूराम को गोद लिया था। मिट्ठूराम जी के तीन पुत्र लोकेश कुमार, लवकुश चौधरी, रणजीत चौघरी है। तीनों विवाहित जीवन व्यतीत कर रहे है। लवकुश चौधरी वर्तमान में माताश्री गोमती देवी जन सेवा निधि लक्ष्मणगढ़ में ब्लॉक कॉर्डीनेटर है।
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